दादा भगवान कथित

भुगते उसी की भूल

मूल गुजराती संकलन : डॉ. नीरू बहन अमीन

अनुवाद : महात्मागण

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Table of Contents
‘दादा भगवान’ कौन?
आत्मज्ञान प्राप्ति की प्रत्यक्ष लिंक
निवेदन
संपादकीय
भुगते उसी की भूल

‘दादा भगवान’ कौन?

जून 1958 की एक संध्या का करीब छ: बजे का समय, भीड़ से भरा सूरत शहर का रेल्वे स्टेशन पर बैठे श्री ए.एम.पटेल रूपी देहमंदिर ‘दादा भगवान’ पूर्ण रूप से प्रकट हुए और कुदरत ने सर्जित किया अध्यात्म का अद्भुत आश्चर्य। एक घंटे में उन्हें विश्वदर्शन हुआ। ‘मैं कौन? भगवान कौन? जगत् कौन चलाता है? कर्म क्या? मुक्ति क्या?’ इत्यादि जगत् के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों के संपूर्ण रहस्य प्रकट हुए।

उन्हें प्राप्ति हुई, उसी प्रकार केवल दो ही घंटों में अन्य को भी प्राप्ति करवाते थे, उनके अद्भुत सिद्ध हुए ज्ञानप्रयोग से। उसे ‘अक्रम मार्ग’ कहा। क्रम अर्थात् सीढ़ी दर सीढ़ी, क्रमानुसार ऊपर चढऩा! अक्रम अर्थात् बिना क्रम के, लिफ्ट मार्ग, शॉर्ट कट!

वे स्वयं प्रत्येक को ‘दादा भगवान कौन?’ का रहस्य बताते हुए कहते थे कि ‘‘यह जो आपको दिखते हैं वे दादा भगवान नहीं हैं, हम ज्ञानी पुरुष हैं और भीतर प्रकट हुए हैं, वे ‘दादा भगवान’ हैं। जो चौदह लोक के नाथ हैं। वे आप में भी हैं, सभी में हैं। आपमें अव्यक्त रूप में रहे हुए हैं और ‘यहाँ’ हमारे भीतर संपूर्ण रूप से व्यक्त हुए हैं। मैं खुद भगवान नहीं हूँ। मेरे भीतर प्रकट हुए दादा भगवान को मैं भी नमस्कार करता हूँ।’’

आत्मज्ञान प्राप्ति की प्रत्यक्ष लिंक

परम पूज्य दादा भगवान (दादाश्री) को 1958 में आत्मज्ञान प्रकट हुआ था। उसके बाद 1962 से 1988 तक देश-विदेश परिभ्रमण करके मुमुक्षुजनों को सत्संग और आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे।

दादाश्री ने अपने जीवनकाल में ही पूज्य डॉ. नीरू बहन अमीन (नीरू माँ) को आत्मज्ञान प्राप्त करवाने की ज्ञानसिद्धि प्रदान की थी। दादाश्री के देहविलय पश्चात् नीरू माँ उसी प्रकार मुमुक्षुजनों को सत्संग और आत्मज्ञान की प्राप्ति, निमित्त भाव से करवा रही थी।

आत्मज्ञानी पूज्य दीपक भाई देसाई को दादाश्री ने सत्संग करने की सिद्धि प्रदान की थी। वर्तमान में पूज्य नीरू माँ के आशीर्वाद से पूज्य दीपक भाई देश-विदेश में निमित्त भाव से आत्मज्ञान करवा है।

इस आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद हज़ारों मुमुक्षु संसार में रहते हुए, सभी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हुए भी मुक्त रहकर आत्मरमणता का अनुभव करते हैं।

निवेदन

ज्ञानी पुरुष संपूज्य दादा भगवान के श्रीमुख से अध्यात्म तथा व्यवहारज्ञान से संबंधित जो वाणी निकली, उसको रिकॉर्ड करके, संकलन तथा संपादन करके पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया जाता है। विभिन्न विषयों पर निकली सरस्वती का अद्भुत संकलन इस पुस्तक में हुआ है, जो नए पाठकों के लिए वरदान रूप साबित होगा।

प्रस्तुत अनुवाद में यह विशेष ध्यान रखा गया है कि वाचक को दादाजी की ही वाणी सुनी जा रही है, ऐसा अनुभव हो, जिसके कारण शायद कुछ जगहों पर अनुवाद की वाक्य रचना हिन्दी व्याकरण के अनुसार त्रुटिपूर्ण लग सकती है, लेकिन यहाँ पर आशय को समझकर पढ़ा जाए तो अधिक लाभकारी होगा।

प्रस्तुत पुस्तक में कई जगहों पर कोष्ठक में दर्शाए गए शब्द या वाक्य परम पूज्य दादाश्री द्वारा बोले गए वाक्यों को अधिक स्पष्टतापूर्वक समझाने के लिए लिखे गए हैं। जबकि कुछ जगहों पर अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी अर्थ के रूप में रखे गए हैं। दादाश्री के श्रीमुख से निकले कुछ गुजराती शब्द ज्यों के त्यों इटालिक्स में रखे गए हैं, क्योंकि उन शब्दों के लिए हिन्दी में ऐसा कोई शब्द नहीं है, जो उसका पूर्ण अर्थ दे सके। हालांकि उन शब्दों के समानार्थी शब्द अर्थ के रूप में, कोष्ठक में और पुस्तक के अंत में भी दिए गए हैं।

ज्ञानी की वाणी को हिन्दी भाषा में यथार्थ रूप से अनुवादित करने का प्रयत्न किया गया है किन्तु दादाश्री के आत्मज्ञान का सही आशय, ज्यों का त्यों तो, आपको गुजराती भाषा में ही अवगत होगा। जिन्हें ज्ञान की गहराई में जाना हो, ज्ञान का सही मर्म समझना हो, वह इस हेतु गुजराती भाषा सीखें, ऐसा हमारा अनुरोध है।

अनुवाद से संबंधित कमियों के लिए आपसे क्षमाप्रार्थी हैं।

संपादकीय

जब हमें बिना किसी भूल के भुगतना पड़ता है, तब हृदय बार-बार द्रवित होकर पुकारता है कि इसमें मेरी क्या भूल? इसमें मैंने क्या गलत किया है? फिर भी जवाब नहीं मिलता, तब अपने भीतर बसे वकील वकालत करना शुरू कर देते हैं कि इसमें मेरी ज़रा सी भी भूल नहीं है। इसमें तो सामने वाले की ही भूल है न? अंत में ऐसा ही मनवा लेता है, जस्टीफाइ करवा देता है कि, ‘लेकिन उसने यदि ऐसा नहीं किया होता तो फिर मुझे ऐसा गलत क्यों करना पड़ता या बोलना पड़ता?’ इस तरह खुद की भूल ढक देते हैं और सामने वाले की ही भूल है, ऐसा प्रमाणित कर देते हैं। और फिर कर्मों की परंपरा सर्जित होती है!

परम पूज्य दादाश्री ने, सामान्य लोगों को भी सभी तरह से समाधान करवाए, ऐसा एक जीवनोपयोगी सूत्र दिया कि इस जगत् में भूल किसकी? चोर की या जिसका चोरी हुआ, उसकी? इन दोनों में से भुगत कौन रहा है? जिसका चोरी हुआ, वही भुगत रहा है न! जो भुगते, उसी की भूल! चोर तो पकड़े जाने के बाद भुगतेगा, तब उसे उसकी भूल का दंड मिलेगा। आज खुद की भूल का दंड मिल गया। खुद भुगते, फिर किसे दोष देना रहा? फिर सामने वाला निर्दोष ही दिखेगा। अपने हाथों से टी-सेट (चाय के प्याले) टूट जाए तो किसे कहेंगे? और नौकर से टूटे तो? उसके जैसा है। घर में, धंधे में, नौकरी में, सभी जगह ‘भूल किसकी है?’ ढूँढना हो तो पता लगाना कि ‘कौन भुगत रहा है?’ उसी की भूल। जब तक भूल है, तब तक ही भुगतना है। जब भूल खत्म हो जाएगी, तब इस दुनिया का कोई व्यक्ति, कोई संयोग, हमें भोगवटा नहीं दे सकेगा।

प्रस्तुत संकलन में दादाश्री ने ‘भुगते उसी की भूल’ का विज्ञान खुला किया है। जिसे उपयोग में लेने से खुद की तमाम उलझनों का हल निकल जाए, ऐसा यह अनमोल ज्ञानसूत्र है!

डॉ. नीरू बहन अमीन

भुगते उसी की भूल

कुदरत के न्यायालय में...

इस जगत् के न्यायाधीश तो जगह-जगह हैं लेकिन कर्म जगत् के कुदरती न्यायाधीश तो एक ही है, ‘भुगते उसी की भूल’। यही एक न्याय है। जिससे पूरा जगत् चल रहा है और भ्रांति के न्याय से पूरा संसार खड़ा है।

एक क्षणभर के लिए भी जगत् न्याय से बाहर नहीं रहता। इनाम देना हो उसे इनाम देता है, दंड देना हो उसे दंड देता है। जगत् न्याय से बाहर नहीं रहता, न्याय में ही है, संपूर्ण न्यायपूर्वक ही है। लेकिन सामने वाले की दृष्टि में यह नहीं आता, इसलिए समझ नहीं पाता। जब वह दृष्टि निर्मल होगी, तब न्याय दिखेगा। स्वार्थ दृष्टि होगी, तब तक न्याय कैसे दिखेगा?

ब्रह्मांड के स्वामी को भुगतना क्यों?

यह पूरा जगत् ‘अपनी’ मालिकी का है। हम ‘खुद’ ही ब्रह्मांड के मालिक हैं। फिर भी हमें दु:ख क्यों भुगतना पड़ा, यह ढूँढ निकालो न? यह तो, हम अपनी ही भूल से बंधे हुए हैं। लोगों ने आकर नहीं बाँधा है। अत: भूल खत्म हो जाए तो फिर मुक्त। और वास्तव में तो मुक्त ही हैं, लेकिन भूल की वज़ह से बंधन भुगत रहे हैं।

(पृ.२)

वह खुद ही न्यायाधीश, खुद ही गुनहगार और खुद ही वकील हो, तब न्याय किसके पक्ष में होगा? खुद के पक्ष में ही। फिर खुद को रास आए ऐसा ही न्याय करेगा न! यानी खुद निरंतर भूले ही करता रहता है। इसी तरह जीव बंधन में आता रहता है। भीतर से न्यायाधीश कहता है कि ‘आपकी भूल हुई है।’ फिर भीतर का ही वकील वकालत करता है कि ‘इसमें मेरा क्या दोष?’ ऐसा करके खुद ही बंधन में आता है। खुद के आत्महित के लिए जान लेना चाहिए कि किसके दोष से बंधन है? जो भुगते, उसी का दोष। लोकभाषा में देखें तो अन्याय है लेकिन भगवान की भाषा का न्याय तो यही कहता है कि, ‘भुगते उसी की भूल’। इस न्याय में तो बाहर के न्यायाधीश की ज़रूरत ही नहीं है।

जगत् की वास्तविकता का रहस्यज्ञान लोगों की समझ में है ही नहीं और जिसकी वजह से भटकना पड़ता है, उस ज्ञान-अज्ञान के बारे में तो सभी को पता है। जेब कट जाए तो उसमें भूल किसकी? इसकी जेब नहीं कटी और तुम्हारी ही क्यों कटी? आप दोनों में से अभी कौन भुगत रहा है? ‘भुगते उसी की भूल!’ यह ‘दादा’ ने ज्ञान में ‘जैसा है वैसा’ देखा है, कि भुगते उसी की भूल है।

सहन करना है या समाधान करना है?

लोग सहनशक्ति बढ़ाने को कहते हैं, लेकिन वह कब तक रह सकती है? ज्ञान की डोर तो आखिर तक पहुँचती है। सहनशक्ति की डोर कहाँ तक पहुँचती है? सहनशक्ति लिमिटेड है, ज्ञान अनलिमिटेड है। यह ‘ज्ञान’ ही ऐसा है कि किंचित्मात्र भी सहन करना नहीं रहता। सहन करना यानी लोहे को आँखों से देखकर पिघलाना। यानी शक्ति चाहिए। जबकि ज्ञान से, किंचित्मात्र सहन किए बगैर परमानंद सहित मुक्ति! और फिर यह भी समझ में आता है कि यह तो हिसाब पूरा हो रहा है और मुक्त हो रहे हैं।

(पृ.३)

जो दु:ख भुगतता है, वह उसकी भूल है और सुख भुगतता है तो वह उसका इनाम। लेकिन भ्रांति का कानून निमित्त को पकड़ता है। भगवान का कानून, रियल कानून है, वह तो जिसकी भूल होगी, उसी को पकड़ेगा। यह कानून एक्ज़ेक्ट है और उसमें कोई परिवर्तन कर सके ऐसा है ही नहीं। जगत् में ऐसा कोई कानून नहीं है कि जो किसी को भोगवटा (सुख-दु:ख का असर) दे सके! सरकारी कानून भी भोगवटा नहीं दे सकता।

यदि चाय का प्याला आपसे फूट जाए तो आपको दु:ख होगा? खुद से फूटे तो क्या आपको सहन करना पड़ता है? और यदि आपके बेटे से फूट जाए तो दु:ख, चिंता और जलन होती है। खुद की ही भूलों का हिसाब है, ऐसा समझ में आ जाए तो दु:ख या चिंता होगी? यह तो दूसरों के दोष निकालकर दु:ख और चिंता खड़ी करते हैं और रात-दिन निरी जलन ही खड़ी करते हैं, और ऊपर से खुद को ऐसा लगता है कि मुझे बहुत सहन करना पड़ता है।

खुद की कुछ भूल होगी तभी सामने वाला कहता होगा न? तो फिर भूल को खत्म कर दो न! इस जगत् में कोई जीव किसी जीव को तकलीफ नहीं दे सकता, इतना स्वतंत्र है और कोई तकलीफ दे रहा है तो वह पहले आपने दखल की है इसलिए। यानी भूल खत्म कर लो, फिर हिसाब नहीं रहेगा।

प्रश्नकर्ता : यह थ्योरी ठीक से समझ में आ जाए तो मन को सभी प्रश्नों का समाधान रहेगा।

दादाश्री : समाधान नहीं, एक्ज़ेक्ट ऐसा ही है। यह जमाया हुआ नहीं है, बुद्धिपूर्वक की बात नहीं है, यह ज्ञानपूर्वक है।

आज गुनहगार-लूटेरा या लूट जाने वाला?

समाचारों में रोज़ आता है कि, ‘आज टैक्सी में दो व्यक्तियों ने

(पृ.४)

किसी को लूट लिया, फलाँ फ्लेट में किसी महिला को बाँधकर लूट लिया।’ ऐसा पढ़कर हमें घबराने की ज़रूरत नहीं है कि मैं भी लूट गया तो? ऐसा विकल्प करना ही गुनाह है। इसके बजाय तू सहज होकर घूम न! तेरा हिसाब होगा तो ले जाएगा, वर्ना कोई बाप भी पूछने वाला नहीं है। इसलिए तू निर्भय होकर घूम। ये अखबार वाले तो लिखेंगे, तो क्या हम डर जाएँ? यह तो ठीक है कि बहुत कम डाइवॉर्स होते हैं, लेकिन ये बढ़ जाएँ तो सभी को शंका होने लगेगी कि हमारा भी डाइवॉर्स हो जाएगा तो? जिस जगह पर एक लाख लोग लूट गए हों, वहाँ पर भी आपको घबराने की ज़रूरत नहीं है। आपका कोई बाप भी ऊपरी नहीं है।

लूटने वाला भुगतता है या फिर जो लूट गया, वह भुगतता है? कौन भुगतता है यह देख लेना। लूटेरे मिल गए और लूट लिया। अब रोना मत, आगे बढ़ते जाना।

जगत् दु:ख भुगतने के लिए नहीं है, सुख भोगने के लिए है। जिसका जितना हिसाब होगा, उतना ही होगा। कुछ लोग सिर्फ सुख ही भोगते हैं, ऐसा क्यों? कुछ लोग सदा दु:ख ही भुगतते रहते हैं, ऐसा क्यों? खुद ऐसा हिसाब लेकर आया है, इसलिए।

‘भुगते उसी की भूल’ यह एक ही सूत्र घर की दीवार पर लिखा होगा तो भुगतते समय समझ जाओगे कि इसमें भूल किसकी है? इसलिए कई घरों में दीवार पर बड़े अक्षरों में लिखा रहता है कि, ‘भुगते उसी की भूल’। फिर यह बात भूलेंगे ही नहीं न!

यदि कोई व्यक्ति पूरा जीवन इस सूत्र को यथार्थ रूप से समझकर इस्तेमाल करें तो उसे गुरु बनाने की आवश्यकता नहीं रहेगी और यह सूत्र ही उसे मोक्ष में ले जाए ऐसा है।

(पृ.५)

ग़ज़ब की वेल्डिंग हुई है, यह

‘भुगते उसी की भूल’ यह तो बहुत बड़ा सूत्र है। संयोगानुसार किसी काल के हिसाब से शब्दों की वेल्डिंग होती है। वेल्डिंग हुए बिना काम नहीं आता न! वेल्डिंग हो जाना चाहिए। ये शब्द वेल्डिंग के साथ हैं। इस पर तो एक बड़ी पुस्तक लिखी जा सकें, इतना सारासार है इसमें!

एक, ‘भुगते उसी की भूल’ इतना कहा, तो एक ओर की पूरी पज़ल खत्म हो जाएगी और दूसरा ‘व्यवस्थित’ कहा तो दूसरी ओर की पज़ल भी खत्म हो जाएगी। खुद को जो दु:ख भुगतना पड़ता है, वह खुद का ही दोष है, अन्य किसी का दोष नहीं है। जो दु:ख देता है, उसकी भूल नहीं है। जो दु:ख देता है, संसार में उसकी भूल है और ‘भुगते उसी की भूल’, भगवान के कानून में है।

प्रश्नकर्ता : दु:ख देने वाले को भुगतना तो पड़ेगा ही न?

दादाश्री : बाद में जब वह भुगतेगा, उस दिन उसकी भूल मानी जाएगी, लेकिन आज तो आपकी भूल पकड़ा गई है।

भूल, बाप की या बेटे की?

एक बाप है, उसका बेटा रात को दो बजे घर लौटता है। यों तो पचास लाख की पार्टी है, और एकलौता बेटा! बाप बेटे की राह देखकर बैठा रहता है कि वह आया या नहीं आया? और जब बेटा आता है तो लडख़ड़ाता हुआ घर में आता है। बाप ने पाँच-सात बार समझाने की कोशिश की तो लड़के ने सुना दी। तब फिर चुप होकर वापस आ गए। फिर हमारे जैसा कोई कहे न कि, ‘छोड़ो न झंझट, उसे पड़ा रहने दो न। आप सो जाओ न चैन से।’ तब कहता है ‘बेटा तो मेरा है न!’ लो! जैसे उसी में से न जन्मा हो!

(पृ.६)

यानी बेटा तो आकर सो जाता था। फिर मैंने उनसे पूछा, ‘बेटा तो सो जाता है, बाद में आप भी सो जाते हैं या नहीं?’ तब कहा, ‘मुझे कैसे नींद आएगी? यह भैंसा तो शराब पीकर आता है और सो जाता है लेकिन मैं थोड़े ही भैंसा हूँ?’ मैंने कहा, ‘वह तो सयाना है।’ देखो, ये सयाने दु:खी हो रहे हैं! फिर मैंने उनसे कहा, ‘भुगते उसी की भूल। वह भुगत रहा है या आप भुगत रहे हैं?’ तब कहने लगे, ‘भुगत तो मैं ही रहा हूँ! पूरी रात का जागरण...’ मैंने कहा, ‘उसकी भूल नहीं है, इसमें आपकी भूल है। आपने पिछले जन्म में उसे बहकाकर बिगाड़ा था, इसका यह परिणाम आया है। आपने बिगाड़ा था। अब वही माल आपको लौटाने आया है।’ ये दूसरे तीन बेटे अच्छे हैं, आप उसका आनंद क्यों नहीं उठाते? सभी अपनी ही खड़ी की हुई मुसीबतें हैं। यह जगत् समझने जैसा है! उस बूढ़े के बिगड़े हुए बेटे से मैंने एक दिन पूछा, ‘अरे, तेरे पिता को कितना दु:ख होता है, तुझे कुछ दु:ख नहीं होता?’ लड़का बोला, ‘मुझे क्या दु:ख है? पिता कमाकर बैठे हैं फिर मुझे कैसी चिंता! मैं तो मौज़ उड़ाता हूँ।’

अर्थात् इन बाप-बेटे में कौन भुगत रहा है? बाप। इसलिए बाप की ही भूल। भुगते उसी की भूल। यह लड़का जुआ खेलता हो या कुछ भी करता हो फिर भी उसके भाई चैन से सो गए हैं न! उसकी माँ भी आराम से सो गई है न! जबकि यह अभागा बूढ़ा अकेला जाग रहा है। इसलिए उसी की भूल। उसकी क्या भूल? तब कहे, इस बूढ़े ने इस लड़के को पूर्वजन्म में बिगाड़ा था। इसलिए पिछले जन्म के ऐसे ऋणानुबंध बंधे हैं, जिनके कारण बूढ़े को ऐसा भोगवटा आता है और लड़का तो खुद की भूल भुगतेगा, जब उसकी भूल पकड़ी जाएगी। दोनों में से कौन दु:खी हो रहा है? जो दु:खी हो रहा है, उसी की भूल। यह इतना, एक ही कानून समझ गया तो पूरा मोक्षमार्ग खुला हो जाएगा।

(पृ.७)

फिर उस बाप को समझाया, ‘अब आप ऐसा रास्ता करते रहना कि उसका सुधार हो। उसे कैसे फायदा हो, उसे नुकसान नहीं हो, ऐसा फायदा करते रहना। मानसिक परेशानी मत उठाना। उसके लिए शारीरिक श्रम आदि सब करना। पैसे अपने पास हों तो देना, लेकिन मन में दु:खी मत होना।

वर्ना फिर भी हमारे यहाँ नियम क्या है? भुगते उसी की भूल है। बेटा शराब पीकर आया और आराम से सो गया और आपको सारी रात नींद नहीं आए तब आप मुझसे कहो कि ‘यह भैंसे की तरह सो रहा है’। तो मैं कहूँगा कि ‘अरे, आप भुगत रहे हो इसलिए आपकी भूल है। वह जब भुगतेगा, तब उसकी भूल कही जाएगी।’

प्रश्नकर्ता : माँ-बाप भूल भुगतते हैं, वह तो ममता और ज़िम्मेदारी के कारण भुगतते हैं न?

दादाश्री : सिर्फ ममता और ज़िम्मेदारी ही नहीं, लेकिन मुख्य कारण है उनकी भूल। ममता के अलावा अन्य कईं कॉज़ेज़ होते हैं, लेकिन तू भुगत रहा है इसलिए तेरी भूल है। इसलिए किसी का दोष मत निकालना, वर्ना फिर से अगले जन्म का हिसाब बंधेगा।

अर्थात् दोनों के कानून बिल्कुल अलग हैं। कुदरत के कानून को मान्य रखोगे, तो आपका रास्ता सरल हो जाएगा और सरकारी कानून को मान्य रखोगे, तो उलझते रहोगे।

प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, उसे खुद को वह भूल दिखनी चाहिए न?

दादाश्री : नहीं, खुद को नहीं दिखेगी। लेकिन उसे दिखाने वाले चाहिए। वह उसका विश्वसनीय होना चाहिए। एक बार भूल दिखी तो फिर दो-तीन बार में उसे अनुभव में आ जाएगी।

(पृ.८)

इसलिए हमने कहा था कि अगर समझ में नहीं आए तो घर में इतना लिखकर रखना कि ‘भुगते उसी की भूल’। आपको सास बहुत सताती हो, रात को आपको नींद नहीं आ रही हो और सास को देखने जाओ तो वह तो सो चुकी होती है और खर्राटें ले रही होती है, तो फिर नहीं समझ में आएगा कि ‘भूल अपनी है’। सास तो चैन से सो गई है। भुगते उसी की भूल। यह बात आपको पसंद आई या नहीं? तो भुगते उसी की भूल, इतना ही समझ में आ जाए तो घर में एक भी झगड़ा नहीं रहेगा।

पहले तो जीवन जीना सीखिए। घर में झगड़े कम हो जाएँ। बाद में दूसरी बात सीखना।

सामने वाला नहीं समझे तो क्या?

प्रश्नकर्ता : कुछ लोग ऐसे होते हैं कि हम चाहे कितना ही अच्छा बर्ताव करें, फिर भी वे नहीं समझते।

दादाश्री : वे नहीं समझते तो उसमें अपनी ही भूल है कि हमें समझदार क्यों नहीं मिला! इनका ही संयोग हमें क्यों हुआ? जब कभी भी हमें कुछ भी भुगतना पड़ता है तो वह अपनी ही भूल का परिणाम है।

प्रश्नकर्ता : तो हमें यह समझना चाहिए कि ‘मेरे कर्म ही ऐसे हैं?’

दादाश्री : अवश्य। अपनी भूल के बिना हमें भुगतना नहीं पड़ता। इस जगत् में ऐसा कोई भी नहीं है कि जो हमें किंचित्मात्र भी दु:ख दे सके और यदि कोई दु:ख देने वाला है, तो वह अपनी ही भूल है। सामने वाले का दोष नहीं है, वह तो निमित्त है। इसलिए ‘भुगते उसी की भूल’।

(पृ.९)

कोई पति और पत्नी आपस में बहुत झगड़ रहे हों और दोनों के सो जाने के बाद अगर आप गुपचुप देखने जाओ तब पत्नी तो गहरी नींद सो रही होती है और पति बार-बार करवटें बदल रहा होता है, तो आप समझ लेना कि सारी भूल पति की है, क्योंकि पत्नी नहीं भुगत रही है। जिसकी भूल होती है, वही भुगतता है और यदि पति सो रहा हो और पत्नी जाग रही हो, तो समझना कि पत्नी की भूल है। ‘भुगते उसी की भूल’। यह तो बहुत गुह्य ‘साइन्स’ है। पूरा जगत् निमित्त को ही काटने दौड़ता है।

इसमें क्या न्याय?

जगत् नियम के अधीन चल रहा है, यह गप्प नहीं है। इसका ‘रेग्युलेटर ऑफ द वर्ल्ड’ भी है, जो निरंतर इस वर्ल्ड को रेग्युलेशन में ही रखता है।

बस स्टैन्ड पर एक महिला खड़ी है। अब बस स्टैन्ड पर खड़े रहना कोई गुनाह तो नहीं है? इतने में एक तरफ से एक बस, बस स्टैन्ड पर चढ़ आती है। क्योंकि ड्राइवर के हाथ से स्टीयरिंग पर नियंत्रण चला गया है। इसलिए बस फुटपाथ पर चढ़कर, उस महिला को कुचल देती है और स्टैन्ड भी तोड़ देती है। वहाँ पाँच सौ लोगों की भीड़ जमा हो जाती है। उन लोगों से कहें कि ‘इसका न्याय कीजिए’। तब वे लोग कहेंगे कि, ‘बेचारी यह महिला बगैर गुनाह के मारी गई। इसमें महिला का क्या गुनाह? यह ड्राइवर नालायक है।’ उसके बाद चार-पाँच अक़्लमंद लोग इकट्ठे होकर कहेंगे कि, ‘ये बस ड्राइवर कैसे हैं, इन लोगों को तो जेल में बंद कर देना चाहिए, ऐसा करना चाहिए! महिला बस स्टैन्ड पर खड़ी थी, उसमें उसका क्या गुनाह बेचारी का?’ अरे, आप उसका गुनाह नहीं जानते। उसका गुनाह था, इसीलिए तो उसकी मौत हुई। अब इस ड्राइवर का गुनाह तो, जब

(पृ.१०)

वह पकड़ा जाएगा तब। इसका जब केस चलेगा और वह केस सफल हुआ तो गुनहगार माना जाएगा, वर्ना बेगुनाह साबित हुआ तो वह छूट जाएगा। उस महिला का गुनाह आज पकड़ा गया। अरे, बिना हिसाब के कोई मारता होगा? उस महिला ने पिछला हिसाब चुकाया। समझ जाना चाहिए कि उस महिला ने भुगता, इसलिए उसकी भूल। बाद में जब वह ड्राइवर पकड़ा जाएगा, तब ड्राइवर की भूल। आज जो पकड़ा गया, वही गुनहगार।

फिर कुछ लोग क्या कहते हैं कि ‘यदि भगवान होता तो ऐसा होता ही नहीं। इसलिए लगता है भगवान जैसी कोई चीज़ ही नहीं है संसार में! इस महिला का क्या गुनाह था? अब इस दुनिया में भगवान है ही नहीं!’ देखो! इन लोगों ने ऐसा सार निकाला। अरे, ऐसा किसलिए? भगवान को क्यों बदनाम करते हो? उन्हें क्यों घर खाली करवाते हो? भगवान से घर खाली करवाने निकल पड़े हैं! अरे भाई, भगवान नहीं होते तो फिर रहा ही क्या इस संसार में? ये लोग क्या समझे कि भगवान की सत्ता नहीं रही। फिर लोगों की भगवान पर आस्था नहीं रहती। अरे, ऐसा नहीं है। ये सभी हिसाब चल रहे हैं। यह एक ही जन्म की बात नहीं है। आज उस महिला की भूल पकड़ी गई, इसलिए उसे भुगतना पड़ा। यह सब न्याय है। वह औरत कुचल गई, वह न्याय है। अर्थात् यह जगत् नियमसहित है। संक्षेप में बस इतनी ही बात करनी है।

यदि यह ड्राइवर की भूल होती तो सरकार का कड़ा कानून होता, इतना कड़ा कि उस ड्राइवर को वहीं के वहीं खड़ा करके गोली मारकर वहीं के वहीं खत्म कर देते। लेकिन ऐसा तो सरकार भी नहीं कहती, क्योंकि किसी को खत्म नहीं कर सकते। वास्तव में वह गुनहगार नहीं है और उसने खुद नया गुनाह खड़ा किया है, वह गुनाह जब वह भुगतेगा तब, लेकिन उसने आपको गुनाह से मुक्त किया। आप गुनाह

(पृ.११)

से मुक्त हुए। वह गुनाह से बंध गया। इसलिए हमने कहा है कि उसे सद्बुद्धि हो कि गुनाह से बंधना मत।’

एक्सिडेन्ट का मतलब तो...

इस कलियुग में एक्सिडेन्ट (दुर्घटना) और इन्सिडेन्ट (घटना) ऐसे होते हैं कि मनुष्य दुविधा में पड़ जाता है। एक्सिडेन्ट यानी क्या? ‘टू मैनी कॉज़ेज एट ए टाइम’ (अनगिनत कारण एक ही समय में) और इन्सिडेन्ट यानी क्या? ‘सो मैनी कॉज़ेज एट ए टाइम।’ (बहुत सारे कारण एक ही समय में) इसीलिए हम कहते हैं कि ‘भुगते उसी की भूल’ और सामने वाला तो जब पकड़ा जाएगा, तब उसकी भूल समझी जाएगी।

ये तो, जो पकड़ा गया, उसे चोर कहते हैं। जैसे ऑफिस में एक आदमी पकड़ा गया, उसे चोर कहते हैं, तो क्या ऑफिस में और कोई चोर नहीं है?

प्रश्नकर्ता : सभी हैं।

दादाश्री : पकड़े नहीं गए, तब तक साहूकार। कुदरत का न्याय तो किसी ने ज़ाहिर किया ही नहीं। बहुत ही छोटा और सटीक है! इसीलिए हल आ जाता है न! शॉर्ट कट! (भुगते उसी की भूल) यह एक ही वाक्य समझने से संसार का बहुत कुछ बोझ खत्म हो जाएगा।

भगवान का कानून तो क्या कहता है कि जिस क्षेत्र में, जिस समय जो भुगतता है, वही खुद गुनहगार है। उसमें किसी को, वकील को भी पूछने की ज़रूरत नहीं है। किसी की जेब कट जाए तो काटने वाले के लिए तो आनंद की बात होगी, वह तो जलेबियाँ खा रहा होगा, होटल में चाय-पानी और नाश्ता कर रहा होगा और ठीक उसी

(पृ.१२)

समय जिसकी जेब कटी है, वह भुगत रहा होगा। इसलिए भुगतने वाले की भूल। उसने पहले कभी चोरी की होगी, इसलिए आज पकड़ा गया इसलिए वह चोर और जेब काटने वाला जब पकड़ा जाएगा, तब चोर कहलाएगा।

मैं कभी आपकी गलती ढूँढने बैठूँगा ही नहीं। पूरा जगत् सामने वाले की गलती देखता है। भुगतता है खुद, लेकिन गलती सामने वाले की देखता है। बल्कि इससे तो गुनाह दुगने होते जाते हैं और व्यवहार भी उलझता जाता है। यह बात समझ जाओगे तो उलझन कम होती जाएगी।

मोरबी की बाढ़, क्या कारण?

मोरबी शहर में जो बाढ़ आई थी और जो कुछ हुआ, वह सब किसने किया? वह ढूँढ निकालो ज़रा। किसने किया था वह?

इसलिए हमने एक ही बात लिखी है कि इस दुनिया में भूल किसकी है? खुद को समझने के लिए एक ही चीज़ को दो तरह से समझना है। भुगतने वाले को ‘भुगते उसी की भूल’, यह बात समझनी है और देखने वाले को ‘मैं उसे मदद नहीं कर पा रहा हूँ, मुझे मदद करनी चाहिए’, इस तरह से देखना है।

इस जगत् का नियम ऐसा है कि जो आँखों से दिखाई देता है, उसे भूल कहते हैं। जबकि कुदरत का नियम ऐसा है कि जो भुगत रहा है, उसी की भूल है।

जहाँ असर हो, वहाँ ज्ञान है या बुद्धि?

प्रश्नकर्ता : अखबार में पढ़ें कि औरंगाबाद में ऐसा हुआ या मोरबी में ऐसा हुआ तो हम पर असर हो जाता है। अगर पढऩे के बाद कुछ भी असर नहीं हो तो क्या उसे जड़ता कहेंगे?

(पृ.१३)

दादाश्री : असर नहीं हो, उसी को ज्ञान कहते हैं।

प्रश्नकर्ता : और असर हो जाए तो उसे क्या कहेंगे?

दादाश्री : वह बुद्धि कहलाती है, मतलब संसार कहलाता है। बुद्धि से इमोशनल हो जाते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं।

यहाँ पर लड़ाई के समय पाकिस्तान वाले बम डालने आते थे। लोग जब यह अखबार में पढ़ते थे कि वहाँ बम गिरा तो यहाँ पर घबराहट हो जाती थी। यह सारा असर जो डालती है, वह उनकी बुद्धि है और बुद्धि ही संसार खड़ा करती है। ज्ञान असरमुक्त रखता है। अखबार पढऩे के बावजूद भी असरमुक्त रहता है। असरमुक्त यानी हमें कुछ भी छूए नहीं। हमें तो जानना और देखना ही है।

इस अखबार का क्या करना है? जानना और देखना, बस! जानना मतलब जिसका विस्तृत विवरण किया हो, उसे जानना कहेंगे और जब विस्तृत विवरण नहीं हो, तब उसे देखना कहेंगे। उसमें किसी का दोष नहीं है।

प्रश्नकर्ता : काल का दोष तो है न?

दादाश्री : काल का भी क्या दोष? भुगते उसी की भूल। काल तो बदलता ही रहेगा न! अच्छे काल में क्या हम सब नहीं थे? चौबीस तीर्थंकर थे, तब क्या हम सब नहीं थे?

प्रश्नकर्ता : थे।

दादाश्री : तो उस दिन हम चटनी खाने में पड़े रहे। उसमें काल क्या करे बेचारा? काल तो अपने आप आता ही रहेगा न! दिन में काम नहीं करेंगे, फिर भी रात तो आकर रहेगी या नहीं?

प्रश्नकर्ता : हाँ।

(पृ.१४)

दादाश्री : फिर रात को दो बजे चने लेने भेजें तो दुगने दाम देने पर भी क्या कोई देगा?

लोगों को लगता है, यह उल्टा न्याय

एक साइकिल सवार, उसके राइट वे (सही रास्ते) पर है और एक स्कूटर सवार उल्टे रास्ते से आया, रोंग वे (गलत रास्ते) से और साइकिल वाले की टाँग तोड़ दी। अब किसे भुगतना पड़ा?

प्रश्नकर्ता : साइकिल वाले को, जिसकी टाँग टूटी है उसे।

दादाश्री : हाँ, उन दोनों में आज किसे भुगतना पड़ रहा है? तो कहते हैं, टाँग टूटी, उसे। उसे आज इस स्कूटर वाले के निमित्त से पहले का हिसाब चुकता हुआ। स्कूटर वाले को अभी कोई दु:ख नहीं है। वह तो जब पकड़ा जाएगा, तब उसका गुनाह ज़ाहिर होगा। अत: जो भुगते उसी की भूल।

प्रश्नकर्ता : जिसे चोट लगी, उसका क्या गुनाह?

दादाश्री : उसका गुनाह, उसका पहले का हिसाब है, जो आज चुकता हुआ। बिना किसी हिसाब के किसी को कोई भी दु:ख नहीं हो सकता। हिसाब साफ नहीं हुए हैं इसलिए दु:ख मिलता है। यह उसका हिसाब आया, इसलिए पकड़ा गया। वर्ना इतनी बड़ी दुनिया में दूसरा कोई क्यों नहीं पकड़ा गया? (अगर पूछे कि) आप क्यों निडर होकर घूम रहे हैं? तब कहेंगे, ‘अपना हिसाब होगा तो होगा, हिसाब नहीं होगा तो क्या होने वाला है? लोग ऐसा कहते हैं न?

प्रश्नकर्ता : भुगतना नहीं पड़े, उसके लिए क्या उपाय है?

दादाश्री : मोक्ष में जाना चाहिए। किसी को किंचित्मात्र भी दु:ख नहीं दें, कोई यदि दु:ख दे, उसे हम जमा कर लें तो अपने बहीखाते साफ हो जाएँगे। किसी को नया नहीं दें, नया व्यापार शुरू

(पृ.१५)

नहीं करें और जो पुराना बाकी है उसे छोड़ दें तो चुकता हो जाएगा।

प्रश्नकर्ता : तो जिसकी टाँग टूटी, उस भुगतने वाले को ऐसा मानना है कि मेरी भूल है और उसे स्कूटर वाले के विरुद्ध कुछ नहीं करना चाहिए?

दादाश्री : कुछ नहीं करना चाहिए, ऐसा नहीं। हम क्या कहते हैं कि मानसिक परिणाम नहीं बदलने चाहिए। व्यवहार में जो कुछ हो रहा हो, उसे होने देना है लेकिन मानसिक राग-द्वेष नहीं होने चाहिए। जिसे ऐसा समझ में आ गया कि ‘मेरी भूल है’, उसे राग-द्वेष नहीं होंगे।

व्यवहार में आपको पुलिस वाला कहे कि नाम लिखवाओ तो लिखवाना पड़ेगा। सारा व्यवहार करना पड़ेगा लेकिन नाटकीय, ड्रामेटिक, राग-द्वेष नहीं करना चाहिए। हमें ऐसा समझ में आ गया कि ‘हमारी भूल है’ तो फिर उस स्कूटर वाले बेचारे का क्या दोष? यह जगत् तो खुली आँखों से देख रहा है, इसलिए उसे सबूत तो देने ही होंगे, लेकिन हमें स्कूटर वाले के प्रति राग-द्वेष नहीं होने चाहिए। क्योंकि उसकी भूल है ही नहीं। हम जो ऐसा आरोप लगाते हैं कि ‘उसकी भूल है’ वह आपकी दृष्टि से अन्याय दिखाई देता है। लेकिन वास्तव में आपकी दृष्टि में फर्क होने से अन्याय दिखाई देता है।

प्रश्नकर्ता : ठीक है।

दादाश्री : कोई आपको दु:ख दे रहा हो तो उसकी भूल नहीं है लेकिन यदि आप दु:ख भुगत रहे हो तो वह आपकी भूल है। यह कुदरत का कानून है। जगत् का कानून कैसा है? जो दु:ख दे, उसकी भूल है।

अगर इस सूक्ष्म बात को समझेगा तो स्पष्टीकरण होगा न, तो व्यक्ति को हल मिलेगा।

(पृ.१६)

उपकारी हैं, कर्म से मुक्ति दिलाने वाले

यह तो, बहू के मन में ऐसा असर हो जाता है कि, ‘मेरी सास मुझे परेशान करती है।’ यह बात उसे रात-दिन याद रहती है या भूल जाती है?

प्रश्नकर्ता : याद रहती ही है।

दादाश्री : रात-दिन याद रहती है। इसलिए फिर शरीर पर भी असर होता है। इसलिए फिर उसे अन्य कोई अच्छी चीज़ समझ में नहीं आती। इसलिए हम उसे क्या समझाते हैं कि इसे अच्छी सास मिली, इसे भी अच्छी सास मिली और तुम्हें क्यों ऐसी सास मिली? यह तो आपका पूर्वजन्म का हिसाब है, इसे चुका दो। किस तरह चुकाना है, यह भी हम बताते हैं, ताकि वह सुखी हो जाए। क्योंकि दोषित उसकी सास नहीं है। जो भुगतता है, उसी की भूल है। यानी सामने वाले का दोष नहीं है।

जगत् में किसी का दोष नहीं है, दोष निकालने वाले का दोष है। जगत् में कोई दोषित है ही नहीं। सब अपने-अपने कर्मों के उदय से हैं। सब जो भी भुगत रहे हैं, वह आज का गुनाह नहीं है। पिछले जन्म के कर्मों के फलस्वरूप सब हो रहा है। आज तो उसे पछतावा हो रहा हो लेकिन कॉन्ट्रैक्ट हो चुका है, तो अब क्या हो सकता है? उसे पूरा किए बिना चारा ही नहीं है।

इस दुनिया में यदि आपको किसी की भूल खोज निकालनी हो तो, ‘जो भुगत रहा है, उसी की भूल है।’ बहू सास को दु:ख दे रही हो या सास बहू को दु:ख दे रही हो, उसमें भुगतना किसे पड़ रहा है? सास को। तो सास की भूल है। अगर सास बहू को दु:ख दे रही हो, तो बहू को इतना समझ लेना चाहिए कि ‘मेरी भूल है।’ दादा जी के ज्ञान के आधार पर यह समझ लेना कि ‘मेरी भूल होगी, इसीलिए

(पृ.१७)

ये गालियाँ दे रही हैं।’ मतलब सास का दोष नहीं निकालना चाहिए। सास का दोष निकालने से ज़्यादा उलझ गया है, कॉम्प्लेक्स होता जा रहा है और सास को बहू परेशान कर रही हो तो सास को दादा जी के ज्ञान से समझ लेना चाहिए कि जो भुगते उसी की भूल, इस हिसाब से मुझे निभा लेना चाहिए।

सास बहू से लड़े फिर भी बहू मज़े में हो और सास को ही भुगतना पड़े, तब भूल सास की है। जेठानी को उकसाकर आपको भुगतना पड़े तो वह आपकी भूल और बिना उकसाए भी वह देने आई, तो पिछले जन्म का कुछ हिसाब बाकी होगा, वह चुका दिया। तब आप फिर से गलती मत करना, वर्ना फिर से भुगतना पड़ेगा। इसलिए छूटना हो तो जो कुछ भी कड़वा-मीठा (गालियाँ आदि) आए, उसे जमा कर लेना। हिसाब चुक जाएगा। इस जगत् में बिना हिसाब के आँख से आँख भी नहीं मिलती, तो फिर क्या बाकी सब बिना हिसाब के होता होगा? आपने जितना-जितना जिस किसी को दिया होगा, उतना-उतना आपको वापस मिलेगा, तब आप खुश होकर जमा कर लेना कि, ‘हाश! अब मेरा हिसाब पूरा होगा।’ नहीं तो भूल करोगे तो फिर से भुगतना ही पड़ेगा।

हमने ‘भुगते उसी की भूल’ यह सूत्र प्रकाशित किया है, तो लोग इसे आश्चर्य मानते हैं कि सही खोज है यह!

गियर में उँगली फँसी, किसकी भूल?

जो कड़वाहट भुगते, वही कर्ता। कर्ता ही विकल्प है। खुद की बनाई हुई मशीनरी में गियर व्हील हो और उसमें आपकी उँगली आ जाए तब अगर उस मशीन से आप लाख बार कहो कि ‘भाई, मेरी उँगली है, मैंने खुद तुझे बनाया है, तो क्या वह गियर व्हील उँगली छोड़ देगा?’ नहीं छोड़ेगा। वह तो आपको समझाता है कि

(पृ.१८)

‘भाई, इसमें मेरा क्या दोष? तूने भुगता इसलिए तेरी भूल।’ इसी प्रकार बाहर भी सब जगह सिर्फ मशीनरी ही हैं। ये सभी लोग केवल गियर ही हैं। गियर नहीं होते तो पूरे मुंबई में कोई पत्नी अपने पति को दु:ख नहीं देती और कोई पति अपनी पत्नी को दु:ख नहीं देता। अपने खुद के परिवार को तो सभी सुखी ही रखते लेकिन ऐसा नहीं है। ये बच्चे, पति-पत्नी सभी मात्र मशीनरी ही हैं, मात्र गियरU हैं।

पहाड़ को क्या वापस पत्थर मारोगे?

प्रश्नकर्ता : कोई हमें पत्थर मारे और उससे हमें चोट लगे तो और अधिक उद्वेग होता है।

दादाश्री : चोट लगने से उद्वेग होता है, नहीं? लेकिन पहाड़ पर से लुढ़कते-लुढ़कते कोई पत्थर सिर पर आ लगे और खून निकलने लगे तो?

प्रश्नकर्ता : उस परिस्थिति में हम ऐसा मानेंगे कि कर्म के अधीन हमें चोट लगनी होगी, इसलिए लगी।

दादाश्री : लेकिन क्या पहाड़ को गालियाँ नहीं दोगे? गुस्सा नहीं करोगे उस वक्त?

प्रश्नकर्ता : उसमें गुस्सा आने का कारण नहीं है। क्योंकि किसने यह किया उसे हम नहीं पहचानते।

दादाश्री : वहाँ पर क्यों समझदारी आ जाती है? सहजरूप से ही समझदारी आ जाती है या नहीं आती? वैसे ही ये सब भी पहाड़ ही हैं। जो पत्थर मारते हैं, गालियाँ देते हैं, चोरी करते हैं, वे सभी पहाड़ ही हैं, चेतन नहीं हैं। यह समझ में आ जाए तो काम बन जाए।

कोई गुनहगार दिखाई देता है तो जो आपके भीतर बैठे हुए शत्रु

(पृ.१९)

क्रोध-मान-माया-लोभ हैं, वे ऐसा दिखाते हैं। खुद की दृष्टि से वह गुनहगार नहीं दिखाई देता, क्रोध-मान-माया-लोभ दिखाते हैं। जिसमें क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं हैं, उसे गुनहगार दिखाने वाला कोई है ही नहीं और उसे कोई गुनहगार दिखाई भी नहीं देता। वास्तव में गुनहगार जैसा कोई है ही नहीं। यह तो, क्रोध-मान-माया-लोभ घुस गए हैं और वे ‘मैं चंदूभाई हूँ’ ऐसा मानने से घुस गए हैं। ‘मैं चंदूभाई हूँ’, यह मान्यता छूट गई तो क्रोध-मान-माया-लोभ चले जाएँगे। फिर भी घर खाली करने में उन्हें थोड़ी देर लगेगी, क्योंकि कईं दिनों से घुसे हुए हैं न!

ये तो संस्कारी रीति-रिवाज

प्रश्नकर्ता : एक तो खुद दु:ख भुगत रहा है, अब वह खुद की भूल से भुगतता है। वहाँ पर दूसरे लोग अपनी ज़रूरत से ज़्यादा अक़्लमंदी दिखाते हुए आते हैं कि, ‘अरे, क्या हुआ, क्या हुआ?’ लेकिन इसमें ऐसा कह सकते हैं कि उन्हें इससे क्या लेना-देना? वह खुद की भूल से भुगत रहा है। आप लोग उसका दु:ख नहीं ले सकते।

दादाश्री : ऐसा है न, ये जो पूछने आते हैं, मिलने आते हैं, वे अपने बहुत उच्च संस्कार के नियम के आधार पर आते हैं। ऐसे मिलने जाना यानी क्या कि वहाँ जाकर उस आदमी से पूछते हैं, ‘कैसे हो भाई, अब आपको कैसा लग रहा है?’ तब वह कहेगा, ‘अच्छा है अब।’ उसके मन में ऐसा होता है कि ‘ओहोहो, मेरी इतनी वैल्यू! कितने लोग मुझसे मिलने आते हैं!’ इससे वह खुद का दु:ख भूल जाता है।

गुणा-भाग

जोड़ना और घटाना, ये दोनों नैचुरल एडजस्टमेन्ट हैं और गुणा-

(पृ.२०)

भाग, ये मनुष्य बुद्धि से किया करते हैं। मतलब रात को सोते समय मन में सोचता है कि ये प्लॉट महँगे पड़ रहे हैं, इसलिए उस जगह पर सस्ते हैं, वह मैं ले लूँगा। इस तरह भीतर गुणा करता है। मतलब सुख का गुणा करता है और दु:ख में भाग लगाता है। वह सुख का गुणा करता है इसलिए, फिर भयंकर दु:खों की प्राप्ति होती है और दु:ख में भाग लगाए फिर भी दु:ख कम नहीं होते! सुख का गुणा करते हैं या नहीं? ‘ऐसा हो तो अच्छा, ऐसा हो तो अच्छा’, करते हैं या नहीं करते? और यह प्लस-माइनस होता है। दिस इज़ नैचुरल एडजस्टमेन्ट। यदि दो सौ रुपये खो गए या फिर व्यापार में पाँच हज़ार का नुकसान हुआ तो वह नैचुरल एडजस्टमेन्ट है। कोई दो हज़ार रुपये जेब काटकर ले गया, वह भी नैचुरल एडजस्टमेन्ट है। ‘भुगते उसी की भूल’, यह हम (ज्ञान में) देखकर गारन्टी से कहते हैं।

प्रश्नकर्ता : ऐसा कहा जाता है कि सुख का गुणा करते हैं, उसमें गलत क्या है?

दादाश्री : गुणा करना हो तो दु:ख का करना, सुख का करोगे तो महा मुसीबत में आ जाओगे। गुणा करने का शौक हो तो दु:ख का करना कि, मैंने किसी को एक थप्पड़ मारा, तो उसने मुझे दो थप्पड़ मारे, वह अच्छा हुआ, ऐसे और कोई भी मारने वाला मिले तो अच्छा होगा। इससे हमारा ज्ञान बढ़ता जाएगा। यदि दु:ख का गुणा करना नहीं रुचे तो मत करना लेकिन सुख कागुणा तो करना ही मत।

बने प्रभु के गुनहगार

‘भुगते उसी की भूल’, यह भगवान की भाषा है। और यहाँ जिसने चोरी की, उसे लोग गुनहगार मानते हैं। कोर्ट भी चोरी करने वाले को ही गुनहगार मानती है।

(पृ.२१)

यानी यह बाहर के गुनाह रोकने के लिए लोगों ने अंदर के गुनाह शुरू कर दिए। जिससे भगवान के गुनहगार बन जाते हैं, वैसे गुनाह शुरू कर दिए। अरे, भगवान का गुनहगार मत बनना। यहाँ का गुनाह होगा तो कोई हर्ज नहीं। दो महीने जेल जाकर वापस आ जाओगे, लेकिन भगवान के गुनहगार मत बनना। आपकी समझ में आया यह? यदि यह सूक्ष्म बात समझ में आ जाए तो काम हो जाएगा। यह ‘भुगते उसी कीभूल’ तो कई लोगों की समझ में आ गया है। क्योंकि ये सब क्या ऐसे-वैसे लोग हैं? बहुत विचारशील लोग हैं! हमने एक बार समझा दिया है। अब बहू सास को दु:ख दिया करती हो और सास ने यही एक सूत्र सुन रखा हो कि ‘भुगते उसी कीभूल’, तब बहू के बार-बार दु:ख देने पर वह तुरंत समझ जाएगी कि मेरी ही भूल होगी, तभी यह दु:ख दे रही है न! तो उसका निबेड़ा आ जाएगा। वर्ना निबेड़ा नहीं आएगा और बैर बढ़ता रहेगा।

समझ में आना कठिन लेकिन वास्तविकता

अन्य किसी की भूल नहीं है। जो कुछ भी भूल है, वह अपनी ही है। खुद की भूल की वजह से यह सारा है। इसका आधार क्या? तो वह है, ‘खुद की भूल।’

प्रश्नकर्ता : देर से ही सही, लेकिन समझ में आ रहा है।

दादाश्री : देर से समझ में आए, वह बहुत अच्छा है। एक ओर शरीर शिथिल होता जाए और एक ओर समझ में आता जाए। कैसा (अद्भूत) काम हो जाएगा! लेकिन अगर शरीर मज़बूत हो, तब समझ में आ जाए तो?

हमने ‘भुगते उसी कीभूल’ सूत्र दिया है न, वह सभी शास्त्रों का सार दिया है। यदि आप मुंबई जाएँ तो वहाँ हज़ारों घरों में यह सूत्र लिखा हुआ है, बड़े-बड़े अक्षरों में ‘भुगते उसी कीभूल’। जब

(पृ.२२)

कभी गिलास फूट जाए, उस वक्तबच्चे आमने-सामने देखकर कह देते हैं कि ‘मम्मी, आपकी भूल है’। हाँ, बच्चे भी समझ जाते हैं। मम्मी से कहते हैं, ‘आपका मुँह लटका हुआ है, यह आपकी भूल है।’ कढ़ी में नमक ज़्यादा हो जाए, तब हमें देख लेना चाहिए कि किसका मुँह बिगड़ा? हाँ, उसी की भूल। दाल गिर जाए तो देख लेना, किसका मुँह बिगड़ा? तो उसकी भूल है। सब्ज़ी में मिर्च ज़्यादा हो जाए तो सभी के मुँह देख लेना कि किसका मुँह बिगड़ा? तो उसकी भूल है यह। भूल किसकी है? ‘भुगते उसी कीभूल’।

आपको सामने वाले का मुँह फूला हुआ दिखा तो वह आपकी भूल है। तब उसके‘शुद्धात्मा’ को याद करके उसके नाम से माफ़ी माँग लेना, तो ऋणानुबंध से छुटकारा हो जाएगा।

वाइफ ने आपकी आँखों में दवाई डाली और आपकी आँख में दर्द होने लगा तो वह आपकी भूल। वीतराग ऐसा कहते हैं कि जो सहन करे उसी की भूल है, जबकि ये सब लोग निमित्त को काटने दौड़ते हैं!

खुद की भूलों की मार खा रहे हैं। जिसने पत्थर फेंका उसकी भूल नहीं है, जिसे पत्थर लगा उसकी भूल है! आपके इर्द-गिर्द के बाल-बच्चों की कैसी भी भूलें या दुष्कृत्य हों, लेकिन यदि उसका असर आप पर नहीं होता तो आपकी भूल नहीं है और अगर आप पर असर होता है तो वह आपकी ही भूल है। ऐसा निश्चित रूप से समझ लेना!

जमा-उधार का नया तरीका

दो आदमी (चंदूभाई और लक्ष्मीचंद) मिले और (चंदूभाई) लक्ष्मीचंद पर आरोप लगाएँ कि ‘आपने मेरा बहुत बुरा किया है।’ तो लक्ष्मीचंद को रातभर नींद नहीं आती और वह (चंदूभाई) चैन से सो

(पृ.२३)

जाता है, इसलिए भूल लक्ष्मीचंद की है। लेकिन दादा जी का सूत्र ‘भुगते उसी की भूल’ उसे याद आ गया तो लक्ष्मीचंद भी चैन से सो जाएगा वर्ना उसे कितनी गालियाँ देता रहेगा!

आपने किसी को पैसे उधार दिए हों और वह छ: महीनों तक पैसे नहीं लौटाए, तो? अरे, उधार किसने दिया? आपके अहंकार ने। उसने प्रोत्साहन दिया और आपने दयालु होकर पैसे दिए, इसलिए अब उसके खाते में जमा करके, अहंकार के खाते में उधार लिख लो।

ऐसा पृथक्करण तो करो

जिसका ज़्यादा दोष है, वही इस संसार में मार खाता है। मार कौन खाता है यह देख लेना। जो मार खाता है, वही दोषित है।

जितना भुगता, उस पर से हिसाब निकल आएगा कि कितनी भूल थी! घर में दस सदस्य हो, उनमें से दो को विचार तक नहीं आता कि घर कैसे चलता होगा। दो सदस्य ऐसा सोचते हैं कि घर में हेल्प करनी चाहिए। दो-तीन सदस्य मदद करते हैं, एक तो पूरा दिन इसी चिंता में रहता है कि घर कैसे चलाएँ, और दो सदस्य तो आराम से सोते रहते हैं। तब भूल किसकी? भाई! भुगते उसी की, चिंता करे उसी की। जो आराम से सोते हैं, उसे कुछ भी नहीं।

भूल किसकी है? तब कहेंगे कि कौन भुगत रहा है, इसका पता लगाओ। अगर नौकर के हाथों से दस गिलास टूट गए तो उसका असर घर के लोगों पर होगा या नहीं होगा? अब घर के लोगों में बच्चों को तो कुछ भुगतना नहीं होता।उनके माँ-बाप अकुलाते रहते हैं। उसमें माँ भी थोड़ी देर बाद आराम से सो जाती है, लेकिन बाप हिसाब लगाता रहता है कि पचास रुपयों का नुकसान हुआ। वह एलर्ट है, इसलिए वह ज़्यादा भुगतता है। इस पर से ‘भुगते उसी की भूल’।

भूल को हमें ढूँढने नहीं जाना पड़ता। बड़े-बड़े जजों या वकीलों

(पृ.२४)

को भी ढूँढने नहीं जाना पड़ता। उसके बजाय यह सूत्र दिया है, यह थर्मामीटर, कि ‘भुगते उसी की भूल’। यदि कोई इतना पृथक्करण करते-करते आगे बढ़ता चलेगा, तो सीधा मोक्ष में पहुँच जाएगा।

भूल, डॉक्टर की या मरीज़ की?

डॉक्टर ने मरीज़ को इन्जेक्शन दिया और डॉक्टर घर जाकर चैन से सो गया। लेकिन मरीज़ को तो सारी रात इन्जेक्शन का दर्द रहा। तो इसमें भूल किसकी? मरीज़ की! और डॉक्टर तो जब भुगतेगा, तब उसकी भूल पकड़ी जाएगी।

बेटी के लिए डॉक्टर बुलाएँ और वह आकर देखे कि नब्ज़ नहीं चल रही हैं, तब डॉक्टर क्या कहेगा? ‘मुझे क्यों बुलाया?’ अरे, तूने हाथ लगाया उसी वक्त गई, वर्ना नब्ज़ तो चल रही थी। लेकिन डॉक्टर डाँटता है और ऊपर से फीस के दस रुपये ले जाता है। ‘अरे, डाँटना हो तो पैसे मत ले और पैसे लेने हों तो डाँटना मत।’ लेकिन नहीं, फीस तो लेनी ही है! मतलब पैसे तो देने पड़ते हैं। ऐसा जगत् है। इसलिए इस काल में न्याय मत ढूँढना।

प्रश्नकर्ता : ऐसा भी हो सकता है कि मुझसे दवाई लें और मुझे ही डाँटें।

दादाश्री : हाँ, ऐसा भी हो सकता है। फिर भी सामने वाले को गुनहगार मानोगे तो आप गुनहगार बनोगे। अभी कुदरत न्याय ही कर रही है।

ऑपरेशन करते समय मरीज़ मर जाए तो भूल किसकी?

चिकनी मिट्टी में बूट पहनकर चले और फिसल जाए तो उसमें दोष किसका? भाई, तेरा ही! यह समझ नहीं थी कि नंगे पैर घूमते तो उँगलियों की पकड़ रहती और गिरते नहीं। इसमें किसका दोष?

(पृ.२५)

िमट्टी का, बूट का या तेरा? भुगते उसी की भूल। इतना ही पूर्ण रूप से समझ में आ जाए तो भी वह मोक्ष में ले जाए। यह जो दूसरों की भूल देखते हैं, वह तो बिल्कुल गलत है। खुद की भूल से ही निमित्त मिलता है। ये तो, अगर जीवित निमित्त मिल जाए तो उसे काटने दौड़ते हैं और अगर काँटा लग जाए तो क्या करेगा? चौराहे पर काँटा पड़ा हो, हज़ारों लोग गुज़र जाएँ फिर भी किसी को नहीं चुभता, लेकिन चंदूभाई वहाँ से निकले कि काँटा टेढा हो तो भी उनके पैर में चुभ जाता है। ‘व्यवस्थित’ तो कैसा है? जिसे काँटा लगना हो उसी को लगेगा। सभी संयोग इकट्ठा कर देगा, लेकिन उसमें निमित्त का क्या दोष?

यदि कोई आदमी दवाई छिड़ककर खाँसी करवाए तो उसके लिए तकरार हो जाती है, लेकिन जब मिर्च के छौंक से खाँसी आए, तब क्या तकरार होती है? यह तो जो पकड़ा जाए, उसी से लड़ते हैं। निमित्त को काटने दौड़ते हैं। लेकिन यदि हकीकत जानें कि करने वाला कौन है और किससे हो रहा है, तब फिर क्या कुछ झंझट रहेगी? तीर चलाने वाले की भूल नहीं है, जिसे तीर लगा, उसकी भूल है। तीर चलाने वाला तो जब पकड़ा जाएगा, तब उसकी भूल। अभी तो जिसे तीर लगा, वह पकड़ा गया। जो पकड़ा गया, वह पहला गुनहगार और दूसरा तो जब पकड़ा जाएगा, तब उसकी भूल।

बच्चों की ही भूलें निकालते हैं, सभी

आपकी पढ़ाई चल रही थी, तब उसमें कोई बाधा आई थी?

प्रश्नकर्ता : बाधाएँ तो आईं थीं।

दादाश्री : वे आपकी भूल से ही। उसमें शिक्षक या अन्य किसी की भूल नहीं थी।

प्रश्नकर्ता : ये विद्यार्थी शिक्षक के सामने उद्दंडता करते हैं। वे कब सुधरेंगे?

(पृ.२६)

दादाश्री : जो भूल का परिणाम भुगते, उसी की भूल है। ये गुरु ही ऐसे पैदा हुए हैं, इसलिए शिष्य उद्दंडता करते हैं। ये बच्चे तो सयाने ही हैं लेकिन गुरु और माँ-बाप घनचक्कर हैं। और बुज़ुर्ग अपनी पुरानी पकड़ नहीं छोड़ते तो फिर बच्चे उद्दंडता करेंगे ही न? अभी माँ-बाप का चारित्र ऐसा नहीं होता कि बच्चे उद्दंड नहीं हो। यह तो बुज़ुर्गों का चारित्र कम हो गया है, इसलिए बच्चे उद्दंडता करते हैं।

भूलों के सामने दादा जी की समझ

‘भुगते उसी की भूल’ यह सूत्र मोक्ष में ले जाएगा। कोई पूछे कि ‘मैं अपनी भूलें कैसे ढूँढूँ?’ तो हम उसे सिखाते हैं कि ‘तुझे कहाँ-कहाँ भुगतना पड़ता है? वही तेरी भूल। तेरी क्या भूल हुई होगी कि ऐसा भुगतना पड़ा? यह ढूँढ निकालना।’ यह तो पूरा दिन भुगतना पड़ता है, इसलिए ढूँढ निकालना चाहिए कि क्या-क्या भूलें हुई हैं!

भुगतने के साथ ही मालूम हो जाएगा कि यह हमारी भूल है। यदि कभी हमसे भूल हो जाए तो हमें टेन्शन होगा न!

हमें सामने वाले की भूल किस तरह समझ में आती है? सामने वाले के होम (आत्मा) और फॉरेन (अनात्मा) अलग दिखाई देते हैं। सामने वाले के फॉरेन में भूलें होंगी, गुनाह होंगे तो हम कुछ नहीं कहते, लेकिन होम में कुछ हुआ तो हमें उसे टोकना पड़ता है। मोक्षमार्ग में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए।

अंदर बहुत बड़ी जमात है, उसमें यह मालूम होना चाहिए कि कौन भुगत रहा है। कभी अहंकार भुगतता है, तो वह अहंकार की भूल है। कई बार मन भुगतता है, तो वह मन की भूल है। कभी चित्त भुगतता है, उस समय चित्त की भूल है। ये तो खुद की भूलों से ‘खुद’ अलग रह सके ऐसा है। बात तो समझनी पड़ेगी न?

(पृ.२७)

मूल भूल कहाँ है?

भूल किसकी? भुगते उसकी! क्या भूल? तब कहते हैं कि ‘मैं चंदूभाई हूँ’ यह मान्यता ही आपकी भूल है। क्योंकि इस जगत् में कोई दोषित नहीं है। इसलिए कोई गुनहगार भी नहीं है, ऐसा सिद्ध होता है।

बाकी, इस दुनिया में कोई कुछ कर सके ऐसा है ही नहीं। लेकिन जो हिसाब बंध चुका है, वह छोड़ेगा नहीं। जो घोटाले वाला हिसाब हो गया है, वह घोटाले वाला फल दिए बगैर रहेगा नहीं। लेकिन अब नए सिरे से घोटाला मत करना, अब रुक जाओ। जब से यह पता चले, तब से रुक जाओ। जो पुराने घोटाले हो चुके हैं, वे तो हमें चुकाने पड़ेंगे, लेकिन इतना देखना कि नए नहीं हों। संपूर्ण ज़िम्मेदारी हमारी ही है, भगवान की ज़िम्मेदारी नहीं है। भगवान इसमें हाथ नहीं डालते। इसलिए भगवान भी इसे माफ नहीं कर सकते। कई भक्त ऐसा मानते हैं कि, ‘मैं पाप कर रहा हूँ लेकिन भगवान माफ कर देंगे।’ भगवान के यहाँ माफी नहीं है। दयालु लोगों के यहाँ माफी होती है। किसी दयालु से कहें कि ‘साहब, मुझसे आपके प्रति बहुत भूल हो गई है।’ तो वह तुरंत माफ कर देगा।

दु:ख देने वाला तो निमित्त मात्र है, लेकिन मूल भूल खुद की ही है। जो फायदा करता है, वह भी निमित्त है और जो नुकसान करवाता है, वह भी निमित्त है। लेकिन वह अपना ही हिसाब है, इसलिए ऐसा होता है। हम आपसे साफ-साफ कह देते हैं कि आपकी ‘बाउन्ड्री’ में किसी को उँगली डालने की शक्ति नहीं है और यदि आपकी भूल है तो कोई भी उँगली डाल सकता है। अरे, लाठी भी फटकारेगा। ‘हम’ तो पहचान गए थे कि कौन घूँसे मार रहा है? सभी आपका अपना ही है। आपका व्यवहार किसी और ने नहीं बिगाड़ा है, आपका व्यवहार आपने ही बिगाड़ा है। यू आर होल एन्ड सोल रिस्पोन्सिबल फोर यॉर व्यवहार। (अपने व्यवहार के लिए आप खुद ही संपूर्ण जिम्मेदार हो।)

(पृ.२८)

न्यायाधीश है, ‘कम्प्यूटर’ समान

भुगते उसी की भूल, यह ‘गुप्त तत्व’ है। यहाँ बुद्धि थक जाती है। जहाँ मतिज्ञान काम नहीं करता, वह बात ‘ज्ञानी पुरुष’ के पास आकर पता चलती है। वह ‘यथार्थ रूप से होती है’। इस गुप्त तत्व को बहुत सूक्ष्म अर्थ में समझना चाहिए। यदि न्याय करने वाला चेतन होता तो वह पक्षपात भी करता लेकिन जगत् का न्याय करने वाला निश्चेतन चेतन है। उसे जगत् की भाषा में समझना हो तो वह कम्प्यूटर जैसा है। कम्प्यूटर में प्रश्न डालो तो कम्प्यूटर से भूल हो सकती है, लेकिन कुदरत के न्याय में भूल नहीं हो सकती। इस जगत् का न्याय करने वाला निश्चेतन चेतन है और ‘वीतराग’ है! यदि ‘ज्ञानी पुरुष’ का एक ही शब्द समझ जाए और ग्रहण कर ले तो मोक्ष में ही जाएगा। किसका शब्द? ज्ञानी पुरुष का! इससे, किसी को किसी की सलाह ही नहीं लेनी पड़ेगी कि इसमें किसकी भूल है? ‘भुगते उसी की भूल’।

यह साइन्स है, पूरा विज्ञान है। इसमें तो एक अक्षर की भी भूल नहीं है। यह तो विज्ञान यानी केवल विज्ञान ही है। पूरे वर्ल्ड के लिए है। यह केवल इन्डिया के लिए ही है, ऐसा नहीं है। फॉरेन में सभी के लिए भी है यह!

जहाँ ऐसा शुद्ध व निर्मल न्याय आपको दिखा देते हैं, वहाँ न्याय-अन्याय का बँटवारा करने का कहाँ रहता है? यह बहुत ही गहन बात है। तमाम शास्त्रों का सार बता रहा हूँ। यह तो ‘वहाँ’ का जजमेन्ट (न्याय) कैसे चल रहा है, वह एक्ज़ेक्ट बता रहा हूँ कि, ‘भुगते उसी की भूल’। हमारे पास से ‘भुगते उसी की भूल’, यह सूत्र बिल्कुल एक्ज़ेक्ट निकला है! उसे जो कोई इस्तेमाल करेगा, उसका कल्याण हो जाएगा!

~ जय सच्चिदानंद

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